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स्वामी एक हजार वर्ष छद्मस्थ अवस्था में विचरके घाती कर्मका तपःसे क्षयकरके केवल ज्ञान पाया हजार वर्ष ऊणा ६ एक पूर्वलाख वर्ष तक विचरके बहुत भव्योंको प्रतिवोधके दशहजारमुनियों के साथ अष्टापदपर्वतपर तीसरे है आरेका तीनवर्ष साडेआठमहीना जब बाकी रहा तब माघकृष्ण त्रयोदशीके दिन मोक्ष गए यह सुनके अहो ।
भव्यो रत्नत्रयात्मक मोक्षमार्गमें यत्न करना श्रेय है इतने कहनेकर अक्षय तृतीयाका व्याख्यान सम्पूर्ण हुआ ॥ अग्रेतन वर्तमान योगः ॥
अथ रोहिणी कथा लिखते हैं। उच्छिट्टमसुन्दरयं, भत्तं तह पाणियं च जोदेइ । साहणं जाणमाणो, भुत्तंपि न जिजए तस्स ॥१॥ ही अर्थः-जो जीव उच्छिष्ट असुंदर भात पाणि जाणता हुआ साधुओंको देवे उसको जन्मान्तरमें भोजनकिया ४ हुआ पाचन न होवे उसके शरीरमें अजीर्ण रोग होवे जैसे श्रीवासुपूज्यः खामीका मघवानामका पुत्रकी पुत्री , रोहिणी नामकी उसका जीवपूर्वभवमें दुर्गन्धानामक कुष्ठरोगवाला भया साधुको कडुवे तूंबेका अहारदेनेसे, रोहिणीका कथानक लिखते हैं । श्रीवासुपूज्यमानम्य, तथा पुण्यप्रकाशकम् । रोहिण्याश्च कथायुक्तं, रोहिणीव्रतमुच्यते ॥ १॥
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चा. व्या. १५४ा
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