________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(७७) करोति यो जैनमुखाम्बुदोद्गतः जो जिनेश्वर
प्रभु के मुख रूप मेघ से पैदा हुई वाणी
देती है। स शुक्रमासोद्भववृष्टिसन्निभो—वह ज्येष्ठ मास में
वर्षा के समान दधातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् ।--आपकी वाणी
का विस्तार मेरे ऊपर अनुग्रह करे ॥३॥ ३७. वीरस्तुति( विशाललोचन )सूत्रम् । विशाललोचनदलं--विशाल नेत्र ही जिसके पत्ते हैं प्रोद्यहन्तांशुकेसरम्-चमकती हुई दांतों की किरणें
जिसका पराग हैं प्रातरिजिनेन्द्रस्य--पात:काल में श्री महावीरप्रभु का मुखपद्म पुनातु वः।-मुखरूपी कमल तुम को पवित्र
करो ॥१॥ येषामभिषेककर्म कृत्वा-जिन जिनेन्द्रों के अभिषेक
( स्नात्रक्रिया ) को करके मत्ता हर्षभरात् सुखं सुरेन्द्राः -हर्ष के समूह से
उन्मत्त (तल्लीन) बने हुए देवेन्द्र सुखस्वरूप हो
For Private And Personal Use Only