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(७५) सव्वं खमावइत्ता--सभी अपराध की क्षमा माँग कर खमामि सव्वस्स अहयं पि।---मैं भी उनके अपराधों को
___ खमता हूँ, वे सब साधु मुझे माफी देवें ॥ २ ॥ सव्वस्स जीवरासिस्स--समस्त जीवराशि के जीवों से भावओ धम्मनिहिअनियचित्तो--धर्म में अपने चित्त
को स्थापन करके विशुद्ध भाव से कृत
अपराधों की क्षमा मांगता हूँ। सव्वं खमावइत्ता-सर्व जीवों से क्षमायाचना करके खमामि सव्वस्स अहयं पि।--उन जीवों के अपराधों
को मैं भी खमता हूँ॥३॥
३६. नमोऽस्तु वर्द्धमानसूत्रम् । इच्छामो अणुसहि, नमो खमासमणाणं- हे गुरुदेव !
आपकी आज्ञा को हम चाहते हैं, क्षमा
श्रमणों को नमस्कार हो। नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः--अरिहन्त,सिद्ध
भगवान् , आचार्य, उपाध्याय और सर्व
साधुओं को नमस्कार हो । । नमोऽस्तु वर्धमानाय–श्रीमहावीरप्रभु को नमस्कार हो, स्पर्द्धमानाय कर्मणा ।-कर्मों के साथ सामना करनेवाले
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