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(७४) सुहुमं वा बायरं वा-अल्प प्रायश्चित्तवाला थोडा, अथवा
बहुत प्रायश्चित्तवाला बड़ा अपराध हुआ हो तुम्भे जाणह अहं न जाणामि--उसको आप जानते
हो, मैं नहीं जानता तस्स मिच्छामि दुक्कडं-उस अपराध से लगे हुए पाप
का मैं मिच्छामि दुक्कडं देता हूँ। ३५. आयरिय-उवज्झाए सुत्तं । आयरिय-उवज्झाए---आचार्य और उपाध्याय पर, सीसे साहम्मिए कुलगणे अ-शिष्य, साधर्मिक साधु,
गच्छ, कुल और गण पर, जे मे केइ कसाया--जो मैंने कोई क्रोधादि कषाय भाव
किया हो, सव्वे तिविहेण खामेमि ।--तो उन सब को त्रिविध योग
से मैं खमाता (माफी मांगता) हूँ॥१॥ सव्वस्स समणसंघस्स--समस्त श्रमणसंघ रूप भगवओ अंजलिं करिअ सीसे-पूज्य साधुओं को मस्तक
पर हाथ जोड़ कर १. एक आचार्य के शिष्य समुदाय को 'गच्छ', अनेक गच्छों के समुदाय को 'कुल' और अनेक — कुलों' के समुदाय को 'गण' अथवा एक आचार्य के परिवार को 'कुल', तथा अनेक आचार्य के परिवार को 'गण' कहते हैं ।
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