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(१३९ ) ४ मन में उद्वेग पैदा करना, ५ प्रशंसा काराने की इच्छा रखना, ६ नियम न करना, ७ भय की चिन्ता रखना, ८ व्यापारिक चिन्ता करना, ९ धर्मफल का सन्देह रखना और १० नियाणा करना।
वचन के दश-१ कुवचन बोलना, २ हुकारा करना, ३ पापकारी आदेय देना, ४ बकवाद करना, ५ कलह करना, ६ आओ, जाओ, बैठो उठो, कहना, ७ गालीगलोच बोलना, ८ छोरा छरी को रमाना, ९ विकथा (व्यर्थ पापकारी कथा) कहना और १० हँसी, मजाक करना ।
काया के बारह-१ आसन स्थिर न रखना, २ दिशा विदिशाओं में ताकना, ३ सावध कार्य करना, ४ आलस्य से अंग मरोड़ना, ५ अविनय करना, ६ बैठे बैठे चाला करना, ७ शरीर का मैल उतारना, ८ खुजली खड़ना-खड़ाना. ९ पैर पर पैर चढा कर बैठना, १० लज्जित शरीरावयवों को उघाड़े रखना, ११ सारे शरीर को कपडे से ढांक लेना, और १२ निद्रा लेना। इस प्रकार इन बत्तीस दोषों को टाल कर सामायिक करना चाहिये ।
८२. शिर पर कम्बल रखने का काल।
आषाढ मुदि १५ से कार्तिक मुदि १४ तक सुबह और शाम को छः छः घड़ी, कार्तिक मुदि १५ से फाल्गुन सुदि १४ तक सुबह और शाम को चार चार घडी, तथा फाल्गुन
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