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(१४०)
सुदि १५ से आषाढ मुदि १४ तक सुबह और शाम को दो दो घडी पर्यन्त सामायिकादि क्रियाओं में बाहर जाते समय मस्तक पर कम्बल ओढ़ कर जाना, आना चाहिये ।
८३. गरम जल वापरने का काल ।
आषाढ़ मुदि १५ से कार्तिक मुदि १४ तक चूल्हा से उतरने बाद तीन प्रहर का, कार्तिक सुदि १५ फाल्गुन सुदि १४ तक चार प्रहर का और फाल्गुन सुदि से आषाढ़ सुदि १४ तक पांच प्रहर का गरम जल का काल है। इस काल के उपरान्त का गरम जल सचित्त माना गया है। इसलिये नियमित काल के पहले गरम जल में चूना डाल देने से दो घड़ी दिन चढे तक वह जल वापरने के काम में आ सकता है, पीने योग्य नहीं।
८४. सातम तथा तेरस के दिन कहने की सज्झाय।
धम्मो मंगल महिमानिलो, धर्मसमो नहि कोय । धर्म मुसानिध्य देवता, धर्मे शिवसुश होय ॥ध० ॥१॥ जीवदया नित पालीये, संयम सतरे प्रकार । बारह भेदे तप तपे धर्मतणो ए सार ॥ ध० ॥ २ ॥ जिम तरुवरने फूलडे भमरो रस लई जाय । तिम सन्तोषे मुनि आतमा, फूलडे पीडा नवि थाय ॥ ५० ॥३॥ इणविध विचरे मुनि गोचरी,
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