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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३७ ) दो लोगस्स का कोयोत्सर्ग करने तक । २ चतुर्विशतिस्तवावश्यक-कायोत्सर्ग पार कर ऊपर लोगस्स कहने तक । ३ वन्दनावश्यक-फिर मुहपत्ति पडिलेहण करके दो वांदणा देने तक । ४ प्रतिक्रमणावश्यक-बाद इच्छाका. कारेण संदिसह भगवन् ! देवसि आलोउं० से सात लाख, १८ पापस्थानक, सवस्सवि देवसिअ० १ नवकार, करेमि भन्ते०, इच्छामि पडिक्कमिडं जो मे देवसिओ०, वंदित्तु० दो० वांदणा, अब्भुटिओ०, दो वांदणा, आयरिय उवज्झाए। कहने तक । पाक्षिक, चतुर्मासिक, तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण का समावेश इसी चौथे आवश्यक में है। ५ कायोत्सर्गावश्यक-आयरिय उवज्झाए बाद दो, एक, एक लोगस्स का काउस्सग्ग कर सिद्धाणं बुद्धाणं कहने तक । ६ प्रत्याख्यानावश्यक-सिद्धाणं बुद्धाणं बाद मुहपत्ति की प्रतिलेखना कर दो वांदणा देने तक । आज कल की प्रथा के अनुसार प्रत्याख्यान दैवसिक प्रतिक्रमण के आरम्भ में कर लिया जाता है । यहाँ पर अन्त में उसका स्मरण कर लिया गया समझना चाहिये। ८०. रात्रिक षडावश्यक की सीमा १ सामायिकावश्यक-प्रतिक्रमण ठाने बाद नमुत्थुणं, करेमि भंते. कहने तक । २ चतुर्विशतिस्तवावश्यक-इच्छामि ठामि० तस्स उत्तरी०, अन्नत्थ० आदि For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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