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(१३६ ) एनी शक्ति अगम्य अपार छे;
एनी भक्ति जीवनमा सार छे, ए छे आतम आधार, करे नावरियां पार । रुडा० १ एमां तत्त्व गहन गृढ छे कडं,
एथी भव्योए शिवमुखने लहां कारी भाव उदार, तजी मोह जंजाल । रुडा नवकार० २ पुरुषोत्तम प्रभु अरिहंत छे,
सिद्ध प्रभु सिद्धिवधूकंत छे, जेनुं करतां स्मरण, मटे जन्म मरण रुडा । नवकार० ३ शोभा आचार्यवयं वधारता,
अनाचारोथी सर्वने वारता, श्री वाचक महान, करे स्वपर कल्याण । रुडा नवकार०४ साधु साधक नाम ओपावता,
पंच परमेष्ठीना गुण गावता, थाय पापोनो नाश, मले मंगल प्रकाश । रुडा नवकार०५ करे आराधना भवि भावथी,
मले शान्ति राजेन्द्र प्रभावथी, जागेज्योति 'जयन्त' थशे भवोनो अन्त । रुडा नवकार०६ ७९. देवसिक षडावश्यक की सीमा ।
१ सामायिकावश्यक-प्रतिक्रमण ठाने बाद करेमि भंते०, इच्छामि ठामि०, तस्स उत्तरी०, अन्नत्थ० कह कर
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