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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३५) अरिहंत जिनशासन संस्थापक, केवलज्ञान प्रकाशी रे, आत्मगुणों की शान्ति प्रसारक, पदवी ली अविनाशी रे। मुन० २ सिद्धशिला पे अविचल पद ले, नित्य निरंतर सुख में रे, सिद्धप्रभु करुणा के सागर,सुमरण कर मन मुख में रे। सुन० ३ अनुशासक शासन में हैं जो, श्री आचार्य प्रतापी रे, स्थिर रह कर सबको स्थिर करते, मुदुवाणी आलापी रे। सुन० ४ सब जन को सदज्ञान के दाता, अंगोपांग के पाठी रे, उवज्झाय बहु गुणधारक, दूर करे भव घाटी रे । सुन० ५ समताभावे वरते निशदिन, मुनिवर आनंदकारी रे, समभावी बन ध्यावो हरदम, होगा नैया पारी रे। सुन० ६ मंगल में यह उत्तम मंगल, पूरव सार कहाया रे, सरि यतीन्द्र' प्रमोदित भावे, परमेष्ठिपद गाया रे। सुन० ७ ७८. परमेष्ठिस्तवन । (मारा माथाना मोड रे मनडांनी–तर्ज) करी हैयानो हार जिन आगमनो सार, रुडा नवकार मन्त्र ने आराधीए; For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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