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( १३४) जगमां चिंतामणि रत्नना जेवा,
जगतना नाथ छो देवाधिदेवा, देवाधिदेवा हुं तो तुम गुण गावू रे । तमने ज० २ त्रण जगतना गुरुवर प्यारा,
दुःखी जीवोना रक्षणहारा, रक्षणहारा तन मनमा वसावू रे । तमने ज० ३ दुःखी जनोना बन्धवबेली,
रटण करुं हुं तो ममताने मेली, ___ ममताने मेली मन मन्दिर गजावू रे । तमने ज०४ सार्थवाह तमे साथने आपो,
क्रोध मानादिनी वेलने कापो, वेलने कापो प्रभो ज्योति जगावं रे । तमने ज० ५ जगतना भावने जाणो विचक्षण,
ज्ञान छे आपनुं खूब ज तीक्ष्ण, 'जयन्त' 'यतीन्द्र' ने चित्त लगावू रे । तमने ज० ६
७७. परमेष्ठिस्तवन ।
(राग-प्रभाती) सुन लो ओ भाई हमारे, परमेष्ठी मन धरना रे, उज्ज्वल अविकल अकल है महिमा, भक्ति उनकी करनारे।
सुन० १
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