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(१३३) शीतल छाया हो जब इस की,
दुःख कभी नहीं कोई रे । नवकार० कई नर मंत्रप्रभाव से अपने,
जीवन में लही सार रे; मुखिया अनन्ता सिद्ध थया कई
ले इस का आधार रे । नवकार० शेठ सुदर्शन शूली चढे पर,
छोडा नहीं नवकार रे; देव आये हुई शूली सिंहासन,
धन्य धन्य अवतार रे । नवकार० अशरण को शरण प्रदाता,
__अमरकुमार प्रमाण रे; आदि अनादि शाश्वत है जो, परमानन्द इसी से . पावे,
सूरि 'राजेन्द्र' की चाख रे; सूरि 'यतीन्द्र' सदा शुभ ध्याने,
____ करते अमृत पान रे । नवकार० ७६. श्री अरिहंत स्तवन ।
(सारी सारी राते-त ) अरिहंत प्रभु तो तमने ज ध्यावं, तमने ज ध्यावं तुम ध्यान लगा रे। तमने ज० १
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