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(१३२) पार्श्व प्रभु पण ए ज सुणाव्यो,
नागने श्री नवकार । जीवनमां० ५ नाग बन्यो धरणेन्द्र एहथी,
महिमा अपरम्पार । जीवनमा० ६ दुःखिया मुखिया होय एहथी,
होय नित मंगलमाल । जीवनमां० ७ प्रगट प्रभावी ज्योतिर्मय जे,
__अन्तर झाकझमाल । जीवनमां० ८ सूरि 'राजेन्द्र' अनादि बताव्यो,
सूरि 'यतीन्द्र' अवधार । जीवनमा० ९ कल्याणकारी मंगलकर्ता,
'जयन्त' जलनिधि पार । जीवनमां० १०
७५, नमस्कार स्तवन ।
( पंचमी तप तुमे करो रे प्राणी-राग ) नवकार मंत्र आराधो रे भवियां आतमशान्ति के काज रे, विधियुत कर लो साधना इस की,
संसारसिन्धु जहाज रे । नवकार पंच परमेष्ठी सम इस जग में,
उपकारी नहीं कोय रे,
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