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(१२९) क्रोध मान माया लालच से, मुक्ति न कोई पाया, इनको तजकर देव गुरु और,
धर्म धरूं सुखदाया, प्रभुजी० मुक्ति मिलती आतम तिरती, तुम शरण में आया आज रे । दर्शनसे० ३ तीर्थपतिके दर्शन करने, गच्छपति संग आया, मोहनखेडा आदि जिनन्द को,
पाकर दिळ हर्षाया, प्रभुजी. मुद्रा सोहत जनमन मोहत, तुम एक हो आदिनाथ रे । दर्शनसे० ४ सूरीश्वर 'राजेन्द्र' प्रभुजी, नाव पडी मझधार, 'यतीन्द्र' चरण की सेवा से यह, हो जावे भवपार;
प्रभुजी० भव भव वन में जङ्गल में स्थल में, 'जयन्त' तुम्ही आधार रे। दर्शनसे० ५
७२. श्री शांतिनाथ स्तवन ।
( दिल में बजी प्यार को शहनाईयां-तर्ज ) जग में बजी शांति की शहनाईयां, आ गई हां वीर जयन्ति भाई ।-जग में० १
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