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( १२१ ) पौषधोपचासे करी, पडिक्कमण चैत्य जुहार । मुव्रत सेठ जिम पामिये, अविचल वास सुधार ॥ ३ ॥ सूरीश्वरराजेन्द्रजी, शोभित रूप अनूप । सरियतीन्द्र पद पामवा, ग्यारस तप वडभूप ॥ ४ ॥
एकादशी तपस्तुति । दिन एकादशी दीपतो ए, काटे भवनी कोड़ तो । नेमि नाथ जिनवर कह्यो ए, तप नहीं एहनी जोड तो ॥ १ ॥ तीन चोवीसीना थया ए, अतीत अनागत लेय तो । दश क्षेत्रोमां दोढसो ए, कल्याणक आदेय तो ॥ मृगशिरशुदि एकादशी ए, मौन लही उपवास तो। सुत्रत जिम पोसह करे ए शिवसुखनी लहे रास तो ॥ २ ॥ इग्यारे पडिमा श्राद्धनी ए, अंग इग्यारे चंग तो । अनुमोदे मुणि आदरे ए, भांगी सर्व विभंग तो॥ भेद अग्यारमो ते बरे ए, छूटे भव दव ताप तो। इग्यार मास वरसां लगे ए, मौन धरी करे जाप तो ॥ समकितधर तप आदरे ए, लहे फल कहे सिद्धान्त तो। रिराजेन्द्रना मूत्रने ए, धनमुनि धरे तजी भ्रान्त तो ॥ ३॥
. एकादशी तपस्तवन । ( ढाल १, सुरपति इन्द्र करे महोत्सव- ए राह )
जगपति नायक नेमिजिणिन्द, द्वारिका नयरी समोसाँ। जगपति वांदवा कृष्ण नरिन्द, यादव कोडीमुं परवर्या ॥१॥
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