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बेसीने उपदेश, प्रभुजी सुनावे रे ॥ तिहाँ सुर नर नारी तिरियंच, निज निज भाषा रे । भेद समझीने भवि जीव, लहे मुखवासा रे ॥२॥ तव इन्द्रभूति महाराज, कहे प्रभु वीरने रे। कहो अष्टमीनो महिमाय, प्रभुजी अमने रे ॥ तव भाषे वीरजिणिंद, सुणो भवि प्राणी रे। अष्टमीदिन जिनकल्याण, धारो चित आणी रे ॥३॥
(ढाल दूसरी, चालो सखी वीरने वन्दन- ए राह )
पहेलु ऋषभनो जन्मकल्याण रे, चारित्र लहे शुभ वाण रे, त्रीजा संभवनो निरवाण, भवि तुमे अष्टमी तिथि सेवो रे, ए छे शिववधू मलवानो मेवो ॥ भ० ॥१॥ अजित सुमति जिन जनम्या रे, जिन सातमा चवणकुं पाम्या रे, अभिनन्दन शिव विसराम्या ॥ भ० ॥२॥ वीसमा मुनिसुव्रतस्वामी रे, तेनो जन्म कल्याण मोक्षधामी रे, नमि नेम जनु शिवगामी ।। भ०॥३॥ श्रीपाश्र्वजिन मोक्ष महन्ता रे, इत्यादिक जिन गुणवन्ता रे, कल्याणक मोक्ष कहन्ता ॥ भ० ॥४॥ तेथी अडकर्मदल पलाय रे, एथी अडसिद्धि अडबुद्धि थाय रे, तेणे कारण शिव चित लाय ॥ भ० ॥ ५॥ एवी वीरजिणिंदनी वाणी रे, मुणी समज्या केई भवि प्राणी रे, इत्यादिक छे जिनगुणखाणी ॥ भ० ॥ ६॥ श्रीउदयसागर मुनिराया रे तस शिष्य विवेके ध्याया रे, श्रीन्यायसागर गुण गाया ॥ भ० ॥ ७ ॥
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