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(११८) सशक्ति उद्यापन करो, मन राखी उजमाल । अष्ट सिद्धि गुणबुद्धिनी, प्रकटे ज्योति विशाल ॥ २ ॥ ऋषभादिक जिनवरतणा, कल्याणक चित लाय । इस कारण ए वर तिथि, आराध्यतम के'वाय ॥ ३ ॥ दंडवीर्यप आराधीने, पाम्या मोक्ष निधान । सरियतीन्द्र भवि ते लहे, अन्ते पद निरवान ॥४॥
___ अष्टमीतिथितपस्तुति । भवनिधि वर तारण अष्टमी, निविड बन्ध निवारण उत्तमी । धवलमंगल माल सुसंपदा, प्रचुर शाश्वत सौख्यकरी सदा ॥१॥ करम अष्ट विदारण सन्तती, मदविभंजन अस्त्र समो तिथि । ऋषभ आदि जिनेश्वर भावनं, कुमतिमार्ग तजी शिवपावनम् ॥ २ ॥ प्रवचनामृतपानसुमंडितं, निखिलशास्त्रसुज्ञानविगुम्फितं । विजयमूरिराजेन्द्र सुनायकं, सरियतीन्द्र सदा सुखदायकम् ॥ ३ ॥
___ अष्टमीतिथि-स्तवन । ( ढाल पहली, चन्दाप्रभु इन स्वाम- ए राह )
श्रीराजगृही नयरी उद्यान, अतिशय छाजे रे । विचरंतां वीर जिणिंद, आवी विराजे रे ॥ तिहाँ चोत्रीस ने पांत्रीस, वाणीगुण गाजे रे। पधार्या श्रेणिकराय, वन्दन काजे रे ॥१॥ तिहाँ चौसठ सुरपति आय, त्रिगड़ो रचावे रे । तिहाँ
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