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( ११५ )
पेख्या पंच
प्रकार ।
मनुहार ।
नन्दीसूत्र में ज्ञानना, मति श्रुत अवधि मन सही, केवल एक आकार पंच ज्ञान में प्रथम छे, मतिज्ञान प्रणमुं सोहगपंचमी, दिन छे ज्ञान दातार पाटले पुस्तक थापीने, वंदो धरिय विवेक । सूरिराजेन्द्रे भाखिया, सूत्र अछे इह केक
पंचमीतिथि स्तुति ।
पंचमी दिन प्रणमो अरिहा नेमि दयाल | राजुलपति सेवो, टालो कर्म कुचाल ॥ भवि पौषध पूजा, अतिही कीजे रसाल | पंचमी तप करीने, वरिये शिववधू माल ॥ १ ॥ पंचमी गतिगामी, पंच नाण धरनार । अरिहंत अनोपम, जेह थया सुखकार || आगामी थाशे, वली वरतित जयकार | सहु जिनवर दरशित, ए तप पंचमी सार ॥ २ ॥ सूरिराजेन्द्र राजा, शोभित त्रिभुवन भाणं । उपदेशे बूझे, रायचन्द्र गुणखाण || आगम में भाखी, अईन्मुख इम वाण । जिनसम जिनप्रतिमा, जाणो चतुर सुजाण ॥ मूरख नवि माने, ताने निज गुरु आण । ते कुगुरु चेला, पत्थर नाव प्रमाण ॥ ३ ॥ पंचमीतप स्तवन ।
( नेम की जावन बनी भारी - ए राह )
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॥ ३ ॥
11 8 11
॥५॥
सुनो श्रीसुमतिनाथ भगवान, दिला दो मुझको केवलज्ञान || टेर || सुमतिमभु सुमति के दाता, पूजतां जीव लहे