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(११४) बीजतिथिसमाराधन-सज्झाय ।
(शमदम गुणना आगरू जी रे- ऐ राह) आर्त रौद्र दुग ध्यानने जी रे, बन्धनदोय निवार। मिथ्या भाव विभावनें जी रे, तजिये समकित धार रे प्राणी, आराधो भली वीज, तपस्या करो दिल रीझ रे प्राणी ॥आ० ॥१॥ समकित सहित जे आचरे जी रे, तप जप करणी प्रमाण । भगवन्ते इम भाषियो जी रे, रहस्य मन में आण रे प्राणी आ०॥ ॥ २ ॥ इण दिन कल्याणक थया जी रे, जिनवर केरा अनेक । तिणसं आराधक तिथि कही जी रे, आराधो मन धरी टेक रे प्राणी॥ आ०॥ ३॥ निश्चय ने व्यवहारथी जी रे, द्विविध धर्म आचार । संवर भावे पालतां जी रे, मिटे कर्म प्रचार रे पाणी ।। आ० ॥ ४ ॥दो हजार गुणनो गणो जी रे, देववन्दन त्रण काल। प्रतिक्रमण पौषध करो जी रे, मन राखी उजमाल रे प्राणी ॥ आ० ॥५॥ विधि सह तप आदयों जी रे, मिलसी फल जयकार । सूरियतीन्द्र पदने ध्यानने जी रे, लहे शिवपद सार रे प्राणी ॥ आ० ॥६॥
६६. पंचमीतिथि चैत्यवन्दन । सेवो अरिहंत सिद्धने, आचारिज उवझाय । साधु सयलने वंदतां, सुख संपति सवि थाय ॥१॥ पंचमी कार्तिकसुदि पखे, आराधो भवि नाण । ज्ञानीने सहु जग नमे, नाणतणो गुण जाण
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