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( ११३ )
पान करी सुख साध भवियाँ । शम तम्बोलने चावतां, नवि रहे कोई उपाध भवियाँ ॥ वी० ॥ १० ॥ प्रवचनपुर में दाखीया, धर्मना दोय प्रकार भवियाँ । तिण कारण भवि बीजने, आराधी तुम सार भवियाँ ॥ बी० ॥ ११ ॥
(ढाल दूसरी - आछीलालनी राह में )
बीजतिथि आराध, छावीस मास लग साधं, सोभागी लाल उत्कृष्टी जिनवर कहीजी । चोवीहार उपवास, पालिये शील उल्लास, सो० शुभमते जिनवाणी लहीजी ॥ १ ॥ पक्किमणा दोय वार, पडिलेहण सार, सो० देव वांदो ऋण कालना जी । तप पूरणथी ताम, उजमणो अभिराम, सो० करिये भगति भावनाजी ॥ २ ॥ राग द्वेष दोय टाल, इणविध बीज तुं पाल, सो० मुक्ति मंदिर पामीयेजी। जिनपूजा गुरुभक्ति, करीये जेवी शक्ति, सो० सकल परभावने वामीयेजी ॥ ३ ॥ ये जिनशासन रीत, आदरे भवि शुभ प्रीत, सो० ते पामे सहु संपदाजी । सूरिराजेन्द्रनी वाण, धरिये चतुर सुजाण, सो० तहत्त करी रहिये मुदाजी ॥ ४ ॥ ( हरिगीत कलश )
हम सहज संपति दाइ ए तिथि, गाई गुण गिरुवा गुणी, इक अधि नव शशि वर्ष वर्ते, मास श्रावण में भणी । वर भौम वासर तिथि अमावस, लहिय कूकसी शहर में, संवेग धारी रचिय सारी, रायचंदे हर्ष में ॥ १ ॥
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