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(११२) "बीजतिथि व्रत आदरो ।” महासुदि बीजे जनमिया, अभिनंदन गुणखाण भवियाँ । श्रावणमुदि बीजे चलो, सुमतिनो चवण प्रमाण भवियाँ ॥ बी० ॥२ ॥ सम्मेतशिखर गिरि ऊपरे, पाम्या पद निरवाण भवियाँ । शीतल दशमो साहिबो, वैशाखबदि बीज जाण भवियाँ । बी० ॥ ॥ ३ ॥ फाणशुदि द्वितीया दिने, चवण अछे अरनाथ भवियाँ । शुभ ध्याने भवि ध्यावजो, जिम लहो शिवपद आथ भवियाँ ॥ बी० ॥ ४॥ माघमुदि बीजे लह्यो, उत्तम केवलनाण भवियाँ । वासुपूज्य जिन बारमा, नमिये नित्य विहाण भवियाँ ॥ बी० ॥५॥ पंच कल्याणक वरतता, अतीअ अनागत जेह भवियाँ । कल्याणक सहु समरीये, इण दिन आणी नेह भवियाँ ।। बी० ॥ ६॥ करणी रूपिया खेत में, समकित रोपो वाव भवियाँ । खातर किरिया नाखीये, खेड़ समता करी दाव भवियाँ । बी०॥ ७ ॥ उपशम नीरे सींचता, प्रगटे समकित छोड़ भवियाँ । सन्तोष वाड़ज कीजिये, पच्चक्खाण चोकी जोड़ भवियाँ ॥ बी० ॥ ८॥ कर्म चोर नाशे सहु, समकित वृक्ष फलंत भवियाँ । अनुभव रूपी मंजरी, चारित्र फल दिपंत भवियाँ ॥ बी० ॥९ । शान्ति सुधारस वारीये,
१ जिस दिन जिस प्रभु का जो कल्याणक हों उन्ही के नाम की बीस माला फेरना । जैसे माघसुदि २ को अभिनन्दन प्रभु का जन्म कल्याणक है तो उस दिन 'अभिनन्दनस्वामिने नमः' इस पद की माला गुणना । इसी प्रकार अष्टमी, एकादशी तप में भी समजना ।
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