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( १११ ) शीतल माधववदि मुगति, कल्याणक तिय काल । जे जे हुआ ते ते नमो, पामो जय उजमाल ॥३॥ ऊर्ज बीज सुदिथी करो, गुणणा दोय हजार । उपदेशी जिनवर अजित, छावीस मासज धार ॥४॥ दुग बन्धन दुग ध्यान तज, भजो दुनय सह नाण । इन्दुकला नित प्रति बढ़े, तिम सूरिभूपेन्द्र प्रमाण ॥५॥
बीजतिथि-जिनस्तुति। सहु दिवस शिरोमणि, बीजतणो दिन होय । सीमन्धर वंदो, शिवसुख साधे सोय ॥ १ ॥ चन्द्र उदय विमाने, वन्दो प्रतिमा चार । शाश्वती जिन भाखी, चार निकाय मशार । बदि मुदिनी बीजे, जे जे जिन कल्याण । ते सवि हुं वन्दु, दोय धरी शुभ झाण ॥ २ ॥ सहु जिनवर भाषे, दोय प्रकारे धर्म । बीज समकित भाख्यो, भव्य लहे तमु मम । दोय भेदे सूत्रनी, रचना करे गणधार । तेहने जे जाणे, सो लहे भवनो पार । नय दोय प्रकाशे, संक्षेपे जिनराज । सूरिराजेन्द्र दाखे, धनमुनि धारण काज ॥३॥
बीजतिथि-स्तवन ।
(ढाल पहली, ललनानी राह में ) प्रणमुं वीरजिणिन्दने, निज गुरुना नमि पाय भवियाँ। बीजतिथिना गायश्युं, कल्याणक सुखदाय भवियाँ ॥१॥
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