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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किहाँ कर्मघाती किहाँ धर्मधारी,नमोवीरस्वामी भजो अन्य वारी। जिसी सेजमां स्वप्नथी राज्य पामी, राचे मन्दबुद्धि धरी जेह स्वामी ॥ १२ ॥ अथिर सुख संसारमा मन्न माचे,ते जना मूढमां श्रेष्ठ | इष्ट छाजे। तजो मोहमाया हरो दम्भरोषी, सजो पुण्यपोषी भजो ते अरोषी ॥ १३ ॥ गति चार संसार अपार पामी,आव्या आश धारी प्रभुपाय स्वामी। तुहीं तुही तुहीं प्रभु परमरागी, भवफेरनी शृंखला मोह भांगी ॥ १४ ॥ मानिये वीरजी अरज छे एक मोरी दीजे दासकू सेवना चरण तोरी पुण्य उदय हुओ गुरु आज मेरो, विवेके लह्यो में प्रभुदर्श तेरो ॥ १५ ॥ ५८. द्वादशावर्त्तगुरुवन्दनविधि । धोती की एक लांग खोल, उत्तरासंग कर तीन वार निसीहि कहते हुए गुरु अवग्रह में प्रवेश करना । फिर वन्दन के लिये आज्ञा मांग कर 'इरियावहि०, तस्स उत्तरी० अन्नस्थ०' कह कर, चार नवकार या एक लोगस्स का काउस्सग्ग कर, पार कर 'लोगस्स०' कहना । बाद दो वांदणा देना, दूसरे वांदणा में 'आवस्सिआए' पद नहीं कहना । फिर दो हाथ जोड़ 'इच्छकार ' बोल कर एक For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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