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( ९६ ) केइ देव जपे लेइ जापमाला, केइ मांसभक्षी महा विकराला । केइ योगिणी भोगिणी भोग रागे, केइ रुद्रणी छागनो होम
मांगे ॥ ५ ॥ इस्या देव देवी तणी आशराखे, तदा मुक्तिना मुखने केम चाखे? जदा लोभना थोकनो पार नाव्यो, तदा मधुनो विदुओ मन्न
भाव्यो ॥ ६ ॥ जेह देवलां आपणी आश राखे, तेह पिंडने मन्नशु लेय चाखे। दीन हीननी भीड ते केम भांजे, फूटो ढोल होय ते कहो केम
वाजे ? ॥ ७ ॥ अरे! मूढ भ्राता भजो मोक्षदाता,अलोभी प्रभुने भजो विश्वख्याता रत्नचिंतामणि सारिखो एह साचो, कलंकी काचना पिंडद्यु
मत राचो ॥ ८ ॥ मंदबुद्धि शुंजेह प्राणी कहे छे, सवि धर्म एकत्व भूलो भमे छे । किहाँ सर्षवा ने किहाँ मेरुधीरं, किहाँ कायरा ने किहाँ
शूरवीरं ? ॥ ९ ॥ किहाँ स्वर्णथालं किहाँ कुंभखंडं, किहाँ कोद्रवा ने किहाँ खीरमंडं किहाँ क्षीरसिंधु किहाँ क्षारनीरं, किहाँ कामधेनु किहाँ छाग
खीरं ? ॥ १० ॥ किहाँ सत्यवाचा किहाँ कूड़वाणी,किहाँ रंकनारी किहाँ रायराणी। किहाँ नारकी ने किहाँ देवभोगी, किहाँ इन्द्रदेही किहाँ कुष्ठ
रोगी ? ॥ ११ ॥
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