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(९८) खमासमण देकर, भूमि पर या गुरुचरण पर जिमना हाथ रख कर 'अन्भुडिओ०' का पाठ कहना ।
इस प्रकार की गुरुवन्दनविधि से दिन में आचार्य, उपाध्याय, गणि, गणावच्छेदक और स्थविरादि पदस्थ को ही वंदन करना चाहिए, सामान्य साधु को नहीं वांदना चाहिये।
५९. सामायिक लेने की विधि ।
प्रथम स्थापनाचार्य स्थापित न हो तो ऊंचे आसन पर पुस्तकादि ज्ञानोपकरण रखना। फिर अबोट वस्त्र पहन कर, कटासण बिछा कर, उस पर बैठ कर, बाँये हाथ में मुहपत्ति मुखके सामने रख कर और जिमना हाथ स्थापनाचार्य के सम्मुख करके, एक नवकार गिन कर 'पचिंदिय' का पाठ बोलना । बाद में द्वादशावतविधि से गुरुवन्दन करना । फिर खामासमण दे कर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक लेवा मुहपत्ति पडिलेहुं इच्छं' कह कर मुहपत्ति पडिलेहना। फिर एक खमासमण दे कर 'इच्छाकारेण. सामायिक संदिसाऊं ? इच्छं' एक खमासमण दे कर 'इच्छाकारेण० सामायिक इच्छं' कह कर दोनों हाथ जोड़ कर 'इच्छकार। भगवन् ! पसाय करी सामायिक दंडक ऊचराओजी ?' बोल कर गुरु या वडिल हो तो उनसे, न होय तो खुद सामायिकदंड (करेमि भंते) उच्चरना। बाद एक खमासमण
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