________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ९३ )
खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं महत्तरागारेणं. सत्रसमावित्तियागारेणं, वोसिरs |
५४. संध्या दुविहार का पच्चखाण ।
दिवसचरिमं पच्चक्खाइ । दुविहं पि आहारं असणं खाइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिबत्तियागारेणं वोसिर ।
५५. देसावगासिय का पच्चक्खाण |
अहन्नं भन्ते ! तुम्हाणं समीवे देसावगासिय पच्चक्खाइ Goaओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । दव्वओणं देसावगासियं खित्तणं इत्थं वा अन्नत्थं वा, कालओणं जाव रतं दिवसं अहोरतं वा, भावओणं छलेणं न छलिज्जामि जाव सन्निवाएणं न भविज्जामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं, न करेमि, न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिर ।
५६. तीर्थवंदनसूत्रम् ।
सकल तीर्थ वन्दू कर जोड़, जिनवर नामे मङ्गल कोड़ । पहिले स्वर्गे लाख बत्रीस, जिनवर चैत्य नमुं निशदीस ॥ १ ॥ सणा आदि प्रत्याख्यान नहीं कर सकता | १ रात्रि, दिवस और अधिक सामायिक का दिशावकासिक लेना हो तो उसीका यहाँ नाम बोलना ।
For Private And Personal Use Only