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(९४) बीजे लाख अहावीश कयां, त्रीजे बार लाख सद्दयां । चोथे स्वर्गे अडलख धार, पांचमे बन्दु लाख ज चार ॥२॥ छठे स्वर्गे सहस पचास, सातमे चालीस सहस प्रासाद । आठमे स्वर्गे छ हजार, नव दशमे वन्दु शत चार ॥३॥ अग्यार बारमे त्रणसे सार, नवग्रेवेयके त्रणसे अढार । पांच अनुत्तर सर्व मली, लाख चोराशी अधिका वली ॥४॥ सहस सत्ताणुं वीश सार, जिनवर भुवन तणो अधिकार । लांबा सो जोजन विस्तार, पचास ऊंचां बहोतेर धार ॥५॥ एकसो एंशी बिंब प्रमाण, सभासहित एक चैत्ये जाण । सो कोड बावन कोड संभाल, लाख चोराणुं सहस चौ आल॥६॥ सातसे ऊपर साठ विसाल, सवी बिंब प्रणमुं त्रण काल । सात कोडि ने बहोतेर लाख, भुवनपतिमां देवल भाख ॥७॥ एकसो एंशी बिंब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण । तेरसे क्रोड नेव्याशी क्रोड, साठ लाख वंदू कर जोड़ ॥ ८॥ वत्रीशे ने उगुणसाठ, ती लोकमां चैत्यनो पाठ ।। त्रण लाख एकाणुं हजार, त्रणसे वीश ते बिंब जुहार ॥९॥ व्यंतर ज्योतिषीमां वली जेह, शाश्वता जिन वन्दं तेह । ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण, बर्द्धमान नामे गुणसेण ॥१०॥ सम्मेतशिखर वन्दं जिन वीश, अष्टापद वन्दं चोवीश । विमलाचल ने गढ गिरनार, आबु ऊपर जिनवर जुहार ॥११॥ शंखेश्वर केसरियो सार, तारंगे श्री अजित जुहार । अंतरीक परकाणो पास, जीरावलो ने थंभणपास ॥१२॥
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