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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९२) ५०. देसावगासिय का पच्चक्खाण । देसावगासियं उवभोग परिभोग पच्चक्खाइ। अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागा. रेणं वोसिरह। ५१ पाणहार का पञ्चक्खाण । पाणहारदिवसचरिमं पच्चक्खाइ । अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महरागात्तरेणं, सव्यसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ । ५२. सांझे चोविहार का पच्चक्खाण । दिवसँचरिमं पच्चैक्खाइ चउविहं पि आहारं-असणं, पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरइ । ५३. संध्या तिविहार का पच्चक्खाण। दिवसचरिमं पच्चक्वाइ । तिविहं पि आहारं-असणं, १ प्रातःकाल चौदह नियम विचार कर रखनेवालों के लिए यह पच्चक्खाण सदा लेने का है। २ तिविहारोपवास, आयंबिल, नीविगइ, एकासणा और बियासणवालों को सांझे यह पच्चक्खाण लेना । ३ थोड़ा आयु बाकी रहने पर यदि चार आहार का त्याग करना हो तो इस पद के ठिकाने । भवचरिम ' पद कहना । ४ स्व ही पच्चक्खाण पाठ लेना हो ' पच्चक्खामि । सभी प्रत्याख्यानों में बोलना । तिविहार आर दुविहार पच्चक्खाण का अधिकारी वही है जो बियासणा एका For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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