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(८८) करणदमो चरणपरिणामो।-पांच इन्द्रियों और उनके
विषय विकारों को जीतो, और चारित्र ग्रहण
करने की भावना रक्खो ॥ ४ ॥ संघोवरि बहुमाणो–साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका
रूप चतुर्विध संघ का बहुमान करो, पुत्थयलिहणं पभावणा तित्थे--शास्त्र लिखो, लिखाओ . और तीर्थस्वरूप जैनशासन की प्रभावना
करो। सड्ढाण किच्चमेअं-- अटूट श्रद्धावाले श्रावकों के इत्यादि
धार्मिक शुभ कृत्य हैं निच्चं सुगुरुवएसेणं।--इसलिये सद्गुरु महाराज के सदु
पदेश से ये कृत्य श्रावकों को हमेशां आचरण करना और इनको अपने कल्याण कारक समझना चाहिये ॥५॥
४३. नमुक्कार-मुडिसहिअं का पच्चक्खाण ।
उग्गए सूरे नमुक्कारसहि मुट्ठिसहि पच्चक्खाइ । चउ
१ नमुक्कारसहि पच्चक्खाण दो घडी दिन व्यतीत होने तक ही है परन्तु उसके पारने में विलम्ब हो और दो घडी उपरान्त खाने में समय हो आय इसीसे साथ में मुट्ठिसहि बोला जाता है और चार आगार इसमें बोले जाते हैं।
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