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पोषयारो अ जयणा अ । परोपकार करो और जाने आनेकी क्रिया में उपयोग रक्खो ॥ २ ॥
जिणपूआ जिणथुणणं-- जिनेन्द्रप्रभु की प्रतिमाओं की पूजा करो, जिनेश्वरों की शुभभाव से स्तुति ( स्तवना) करो,
गुरुथुअ-साहम्मिआण वच्छलं - गुरुदेव की प्रशंसा करो, स्वधर्मी भाइयों की भक्ति - सेवा करो । ववहारस्सय सुद्धी - सब तरह से शुद्ध व्यवहारों का आचरण करो
रहजत्ता तित्थजत्ता य । - जुलुस के साथ रथयात्रा का वरघोडा निकालो, और जिनतीर्थधामों की शुद्धान्तःकरण से यात्रा करो ॥ ३ ॥
उवसम-विवेग-संवर- क्रोधादि कषायों को जीतो,
तच्च तथा अतत्व पदार्थों का जानपना करो और बाह्याभ्यन्तर परिग्रह का त्याग या उसकी मूर्छा कम करो,
भासासमिई छज्जीवकरुणा य-बोलने में विवेक रखना सीखो कौर षड्जीवनिकार्यों पर दया रक्खो । धम्मिअजणसंसग्गो - धर्मात्मा, सदाचारी पुरुषों का समागम ( सोबत ) करो,
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