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अज्ज वि वज्जह जासिं—आज तक भी जिन महासतियों का बाजा बज रहा है और
जसपडहो तिहुअणे सयले । - - यश रूपी पटह समस्त त्रिभुवन में बज रहा है ॥ १३ ॥
४२. मन्नह जिणाणं सज्झायसुतं ।
मन्नह जिणाणमाणं - जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा मानो, मिच्छं परिहरह धरह सम्मतं - मिथ्यात्व का त्याग करो, सुगुरु, सुदेव और सुधर्म रूप सम्यक्त्व को धारण करो ।
छव्विह- आवस्यम्मि छ प्रकार की आवश्यक (प्रतिक्रमण ) रूप क्रिया करने में
उज्जुत्ता होह पइदिवसं । -- प्रतिदिन उद्यमवन्त रहो ॥१॥ पवेसु पोसहवयं -- पर्वतिथिओं में पौषघव्रत करो,
दाणं सीलं तवो अ भावो अ-सुपात्र में दान दो, ब्रह्मचर्य पालन करो यथाशक्ति तपस्या करो और मानसिक परिणाम सदा शुद्ध रक्खो | सज्झाय-नमुक्कारो—स्वयं पढो, दूसरों को पढ़ाओ, नवकार मंत्र का जाप करो.
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