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[ 434 1 (मा)र्थसार्थपरमार्थविदो बभूवुः श्रीवर्द्धमानविभुरस्तु सर्वः शिवाय ।
निजधर्माचार्येभ्यो नत्वा निष्कारणकबंधुभ्यः । श्रीषडशीतिकशास्त्रं विवृणोमि यथागमं किंचित् ।।
नमिय जिणं जियमगण गुणगणु चउपजोग लेसाउ ।
बंध[प्प]बहूभावे संखिछइ किमवि वुच्छं ।। It ends abruptly.
The authorities quoted in the commentary. ___5B, देवद्धिक्षमाश्रमण; 6A, नंद्यध्ययने; 7B, श्रीजिनभद्रक्षमाश्रमण; 8A, भाष्यसुधाम्भोनिधि; 9A, देवद्धिवाचक; 12B, उमास्वातिवाचक; 15B, पाणिनि; 16A, हरिभद्रपूरि; नंदिवृत्ति; 19A, जितकल्पभाष्य ; 20A, बृहत्कर्मविपाक; 24A, धर्मरत्नटीका; 24B, बृहच्छतकबृहच्चूर्णी ; 40A, हेमचन्द्र ; 53A, आवश्यकटीका; 58B, श्यामपादाः; 59B, जिनभद्रगणि; 67A, भद्रबाहुस्वामिपादाः; 73A, बृहत्कर्मस्तवभाष्य; 73B, बृहत्कर्मस्तवसूत्र;
293 7446 कर्मग्रंथ (Karmagrantha) by Devendrasuri
With a commentary in Marwari in Tripāțha form. Substance : Country-made paper. 10x41 inches. Folia, 19. Character, Jaina Nāgari of the nineteenth century. Appearance, discoloured.
Karmagrantha consists of five Granthas. The fifth work is wanting in the present manuscript. See W. pp. 837-838. The commentary begins with a Sanskrit Margalācaraṇa.
श्रीवीतरागाय नमः ॥ वर्धमानं जिनं नत्वा स्वान्योपवृत्तिहेतवे ।
कर्मग्रन्थस्य वक्ष्येऽहं व्याख्याबालावबोधिनी ।। श्रीवर्धमान प्रति इँ नमस्कार करी नइ etc. etc. I. 8A. (T.) इति प्रथम ग्रंथ: ; (Comm.) इति कर्म विपाकनु बालावबोधः । II. 10B. (T.) इति कर्मस्तवः समाप्त: ; (Comm.) इति कर्मभाव सूत्र नु बालावबोध कहिउ । III. 13A. (T.) इति श्रीकर्मग्रंथ स्वामित्वं (Comm.) इति बंधस्वामित्व नु विचार कहिउ । IV . इति षडशीतिकं समाप्त ।
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