________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
80 ] देवसत्तिही नक्खत्तकरणगहहि विसयं मु + त च।
भणउ वललयवल निमित्तवलमुत्तमं वावि ॥ The Ms ends Fol 35a.
पसच्चेसु निमित्तेसु सुपसचाणि सया रभे अप्पसञ्चनिमित्त सु सव्यकज्जाणि वजए । दिवसाउ तिही वलिउ तिही वलियं तु सुव्वई रिक्सा । नकखत्ता करणमाह'सु करणा गहदिनी बली गहह दिणाउ मुहत्तोमहत्ता स उणो वालो स उणा उवलविलग्गं तउ निमत्त पहा । णं तु विलग्गउ निमित्ताउ निमत्त वलमुत्तम । न तंसे विजए लोएमि मत्ता जं वल भवे। एसो वलावलुविही समासउ कत्तिसु विहिए हि ॥
अणुउग णाणगम्भो पायव्वे अप्पमत्तहि ॥ COLOPHON.
इति गणिविद्या प्रकीर्ण के संपूर्णमस्तु जनि ॥
4310 (IV चउसरण पइन्ना Cansarana Painnā The Ms begins Fol 35b.
सावज जोग विरइउ कित्तणगुण वउ । अप्पडवत्ती खलिस्सणहणावणत्ति गिछगुणधारणा चेव । चारित्तस्स विसोहीका रइसा माईएण किल इयं ।
सावज्जेयर जोगाणं वजणासेवणा ओणउ । । The Ms ends Fol 38b.
चउरंगो जिणधस्मो न कऊ चरउम सणमउण कयं । घरउणं भव सच्चे ऊहाहारि ऊजम्मो। इयजीवपमायमहारि वीरभदं ओमेवमग्झयणं जाय सुतिसमं वंजा।
कारणं निच्चुयसुहाणं॥ COLOPHON.
इति चउसरणा सम्मत्ता।
.
For Private and Personal Use Only