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4310 (V)
संथारग पन्ना Samthāraga Paimnā
काउण मुक्काणं जिणवरसहस्स वद्धमाणस्स । संस्थाम्मि निबद्ध गुणपरवाडि निसामेह ॥ एस किरगहण या एस किरमणो रेहानु विहियाणं । एस कर पच्छिमंते पड़ागहरण' सुविहियाण ं ॥
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चंद विद्भं लब्धं केवलसरिसं समाउपरिहीणं । उत्तमसागऊ पडिवन्नो उत्तम श्रद्ध' ॥ एवं अभिया संधारग इं'दबंधमारूढ़ा | उमण नरिंदचंदा सुहसंक्रमण सपादतु ॥
इति संथारपयन्नं सम्मत्तं ।
4310 (VI)
आउरपच्चकुखाण पइन्ना Āwrapaccakkhāna Painnā
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हे सेक हे सविर समद्दिट्ठि मारेज्ज जो जीवे तं होइ वालपिंडिउ सरण जिणसासणे भणेयं ।
पंच पश्रणुव्वयाई' सत्तउसिक्खाउ देसजइधम्मो सन्वे
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एवं पच्चक्खाणं जो काही मरणदेसका लिम्मि धीरो अमूदसंणो सो गच्छइ उत्तम ठाण* ॥ धीरो जरमरणविऊ धीरो विन्नास संपन्नो "लोगस्स उज्जोय गरे दिसो खयं स चुडुक्खाणं ॥
आउरपच्चक्खाण ं नाम पइन्नो ||
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वदेसेण वत्तण जो होइ देसजई ॥
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