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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविर्षोंकी विशेष चिकित्सा--"संखिया"। ५१ वालेका मल भी, अन्तिम अवस्थामें, वैसा ही होता है। अतः हम दोनों तरहके रोगियोंका फ़र्क लिखते हैं: हैजेवाले और संखिया खानेवालेकी पहचान । __ हैजे में प्रायः पहले दस्त और पीछे कय होती हैं; संखिया खानेवालेको पहले क़य और पीछे दस्त होते हैं । संखिया खानेवालेके मलके साथ खून गिरता है, पर हैजेवालेके मलके साथ खून नहीं गिरता । हैजेवालेका मल चाँवलोंके धोवन-जैसा होता है; पर संखियावालेका मल, अन्तिम अवस्थामें ऐसा हो सकता है । हैजे में वमनसे पहले गलेमें दर्द नहीं होता, पर संखियावालेके गलेमें दर्द जरूर होता है। इन चार भेदोंसे-हैजा हुआ है या संखिया खाया है, यह बात जानीजा सकती है। संखियावालेको अपथ्य । संखिया खानेवाले रोगीको नीचे लिखी बातोंसे बचाना चाहियेः-- (क) शीतल जल । पैत्तिक विषोंपर शीतल जल हितकारक होता है; पर वातिक विषों में अहितकर होता है । संखिया खानेवालेको शीतल जल भूलकर भी न देना चाहिये । (ख ) सिरपर शीतल जल डालना । (ग ) शीतल जलसे स्नान करना । (घ) चाँवल और तरबूज अथवा अन्य शीतल पदार्थ । चाँवल और तरबूज़ संखियापर बहुत ही हानिकारक हैं। (ङ) सोने देना । सोने देना प्रायः सभी विषों में बुरा है। संखियाका ज़हर नाश करने के उपाय । प्रारम्भिक उपाय:-- (क ) संखिया खाते ही अगर मालूम हो जाय, तो वमन कर दो। क्योंकि विष खाते ही विष आमाशयमें रहता है और वमनसे निकल जाता है । सुश्रुतमें लिखा हैः For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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