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विष-उपविर्षोंकी विशेष चिकित्सा--"संखिया"। ५१ वालेका मल भी, अन्तिम अवस्थामें, वैसा ही होता है। अतः हम दोनों तरहके रोगियोंका फ़र्क लिखते हैं:
हैजेवाले और संखिया खानेवालेकी पहचान । __ हैजे में प्रायः पहले दस्त और पीछे कय होती हैं; संखिया खानेवालेको पहले क़य और पीछे दस्त होते हैं । संखिया खानेवालेके मलके साथ खून गिरता है, पर हैजेवालेके मलके साथ खून नहीं गिरता । हैजेवालेका मल चाँवलोंके धोवन-जैसा होता है; पर संखियावालेका मल, अन्तिम अवस्थामें ऐसा हो सकता है । हैजे में वमनसे पहले गलेमें दर्द नहीं होता, पर संखियावालेके गलेमें दर्द जरूर होता है। इन चार भेदोंसे-हैजा हुआ है या संखिया खाया है, यह बात जानीजा सकती है।
संखियावालेको अपथ्य । संखिया खानेवाले रोगीको नीचे लिखी बातोंसे बचाना चाहियेः--
(क) शीतल जल । पैत्तिक विषोंपर शीतल जल हितकारक होता है; पर वातिक विषों में अहितकर होता है । संखिया खानेवालेको शीतल जल भूलकर भी न देना चाहिये ।
(ख ) सिरपर शीतल जल डालना । (ग ) शीतल जलसे स्नान करना । (घ) चाँवल और तरबूज अथवा अन्य शीतल पदार्थ । चाँवल और तरबूज़ संखियापर बहुत ही हानिकारक हैं। (ङ) सोने देना । सोने देना प्रायः सभी विषों में बुरा है।
संखियाका ज़हर नाश करने के उपाय । प्रारम्भिक उपाय:-- (क ) संखिया खाते ही अगर मालूम हो जाय, तो वमन कर दो। क्योंकि विष खाते ही विष आमाशयमें रहता है और वमनसे निकल जाता है । सुश्रुतमें लिखा हैः
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