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चिकित्सा-चन्द्रोदय । . संखिया जियादा खा लेनेसे पेटमें बड़े जोरसे दर्द उठता, जलन होती, जी मिचलाता और क़य होती है; गलेमें खुश्की होती और दस्त लग जाते हैं तथा प्यास बढ़ जाती है । शेषमें, श्वास रुक जाता, शरीर शीतल हो जाता और रोगी मौत के मुंहमें चला जाता है। - वैद्यकल्पतरुमें एक सज्जन लिखते हैं-संखिया या सोमलको अंगरेजीमें आरसेनिक कहते हैं। संखिया वजनमें थोड़ा होनेपर भी बड़ा जहर चढ़ाता है । उसमें कोई स्वाद नहीं होता, इससे बिना मालूम हुए खा लिया जाता है। अगर कोई इसे खा लेता है, तो यह पेटमें जाने के बाद, घण्टे-भरके अन्दर, पेटकी नलीमें पीड़ा करता है। फिर उछाल और उल्टी या वमन होती हैं। शरीर ठण्डा हो जाता, पसीने आते और अवयव काँपते हैं । नाकका बाँसा और हाथ-पाँव शीतल हो जाते हैं । आँखोंके आस-पास नीले रंगकी चकई-सी फिरती मालूम होती है । पेटमें रह-रहकर पीड़ा होती और उसके साथ खूब दस्त होते हैं । पेशाब थोड़ा और जलनके साथ होता है। पेशाब कभी-कभी बन्द भी हो जाता है और कभी-कभी उसमें खून भी जाता है। आँखें लाल हो जाती हैं, जलन होती, सिर दुखता, छातीमें धड़कन होती, साँस जल्दी-जल्दी और घुटता-सा चलता है। भारी जलन होनेसे रोगी उछलता है। हाथ-पैर अकड़ जाते हैं। चेहरा सूख जाता है । नाड़ी बैठ जाती और रोगी मर जाता है। रोगीको मरने तक चेत रहता है, अचेत नहीं होता। कम-से-कम ॥ ग्रेन संखिया मनुष्यको मार सकता है। __ हैजेके मौसममें, जिनकी जिनसे दुश्मनी होती है, अक्सर वे लोग अपने दुश्मनोंको किसी चीज में संखिया दे देते हैं, क्योंकि हैजेके रोगी और संखिया खानेवाले रोगीके लक्षण प्रायः मिल जाते हैं। हैजेमें दस्त और कय होते हैं, संखिया खानेपर भी कय और दस्त होते है। हैजेवालेका मल चाँवलके धोवन-जैसा होता है और संखिये
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