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चिकित्सा-चन्द्रोदय। सेर पानीमें घोल लो और ऊपरसे पानीकी बर्फ़ भी मिला दो । इस पानीमें एक कपड़ा भिगो-भिगोकर रोगीकी छातीपर रखो । जब पहला कपड़ा सूख जाय, दूसरा भिगोकर रखो। साथ ही बिहीदानेके लुआबमें मिश्री मिलाकर, उसमेंसे थोड़ा-थोड़ा यही लुआब रोगीको पिलाते रहो । जब तक खून आना बन्द न हो, यह क्रिया करते रहो। बदनपर "नारायण तैल" या "माषादि तैल"की मालिश भी कराते रहो । तेलकी मालिशसे सर्दी पहुँचनेका खटका न रहेगा । एक काम
और भी करते रहो, रोगीके सिरपर "चमेलीका तेल” लगवाकर सिरको गुलाब-जलसे धो दो और सिरपर खस या कपड़ेके पंखेकी हवा करते रहो, ताकि रोगी बेहोश न हो। इस उपायसे अनेक बार उरःक्षतवालोंका मुँ हसे खून आना बन्द किया है । परीक्षित है।
(११) अगर ऊपरकी दवाका भिगोया कपड़ा छातीपर रखनेसे लाभ न हो-- खून बन्द न हो, तो सफेद चन्दन, लालचन्दन, धनिया, नस, कमलगट्टे की गरी, शीतल मिर्च ( कवाबचीनी), सेलखड़ी, कपूर, कल्मीशोरा और फिटकरी-इन दसोंको महीन पीसकर, सेर-डेढ़-सेर पानीमें घोल दो और उसीमें कपड़ा भिगो-भिगोकर छातीपर रखो। बीच-बीचमें दूध और मिश्री मिलाकर पिलाते रहो। अगर इस दवासे भी लाभ न हो, तो “इलाजुल गुर्बा'की नीचेकी दवासे काम लो।
(१२) बबूलकी कोंपल १ तोले, अनारकी पत्तियाँ १ तोले, आमले १ तोले और धनिया ६ माशे--इन सबको रातके समय शीतल जलमें भिगो दो। सवेरे ही मल-छानकर, इसमें थोड़ी-सी मिश्री मिला दो। इसमेंसे थोड़ा-थोड़ा पानी दिनमें तीन-चार बार पिलानेसे अवश्य मुँ हसे खून आना बन्द हो जायगा । परीक्षित है। . (१३) अगर ऊपरकी दवासे भी लाभ न हो, तो "गुलस्त्रैरु" एक
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