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चिकित्सा-चन्द्रोदय । दाख, १७ जीवन्ती, १८ पोहकरमूल, १६ अगर, २० गिलोय, २१ हरड़, २२ वृद्धि, २३ जीवक, २४ ऋषभक, २५ कचूर, २६ नागरमोथा, २७ पुनर्नवा, २८ मेदा, २६ छोटी इलायची, ३० नील कमल, ३१ लालचन्दन, ३२ विदारीकन्द, ३३ अड़ सेकी जड़, ३४ काकोली, ३५ काकजंघा, और ३६ बरियारेकी छालः-- ___ इन ३६ दवाओंको चार-चार तोले लो और उत्तम आमले पाँच सौ नग लो । इन सबको ६४ सेर पानीमें डालकर, कलईदार बासनमें
औटाओ । जब १६ सेर पानी बाकी रहे, उतारकर काढ़ा छान लो। ___इसके बाद, छाननेके कपड़े से आमलोंको निकाल लो । फिर उनके बीज और ततूरे या रेशा निकालकर, उनको पहले २४ तोले घीमें भून लो । इसके बाद उन्हें फिर २४ तोले तेलमें भून लो और सिलपर पीसकर लुगदी बना लो। - अब अढ़ाई सेर मिश्री, ऊपरका छना हुआ काढ़ा और पीसे हुए आमलोंकी लुगदी-इन सबको कलईदार बासनमें मन्दाग्निसे पकाओ। जब पकते-पकते और घोटते-घोटते लेहके जैसा यानी चाटने-लायक हो जाय, उतारकर नीचे रखो।
फिर तत्काल बंसलोचन १६ तोले, पीपर ८ तोले, दालचीनी २ तोले, तेजपात २ तोले, इलायची २ तोले और नागकेशर २ तोले-इन छहोंको पीस-छानकर उसमें मिला दो। जब शीतल हो जाय उसमें २४ तोले शहद भी मिला दो और घीके चिकने बर्तनमें रख दो।
इसकी मात्रा ६ माशेसे दो तोले तक है। इसे खाकर ऊपरसे बकरीका दूध पीना चाहिये । कमजोरको ६ माशे सवेरे और ६ माशे शामको चटाना चाहिये । कोई-कोई इसपर गायका गरम दूध पीनेकी भी राय देते हैं।
इसके सेवन करनेसे विशेषकर खाँसी और श्वास नाश होते हैं; क्षतक्षीण, बूढ़े और बालककी अग्नि वृद्धि होती है; स्वरभंग, छातीके
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