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· चिकित्सा-चन्द्रोदय । . (२) सिल गैर-हक़ीक़ी होनेसे केवल कच्चा कफ आता है । खून और पीप नहीं आते।
(१) सिल गैर-हक़ीक़ी--जिसमें खाली कच्चा कफ गिरता है, आराम हो सकती है; पर (२) सिल-हकीक़ी, जिसमें खून और पीप निकलते हैं, आराम होनी मुश्किल है ।
पहचाननेकी तरकीब । सिल हक़ीक़ी है या गैर-हक़ीक़ी-इसकी पहचान हकीम लोग नीचेकी तरकीबोंसे करते हैं:
वे लोग सिलवाले रोगीके थूकको पानीसे भरे गिलासमें डाल देते हैं और उसे बिना हिलाये-डुलाये घण्टे-दो-घण्टे रखे रहते हैं। फिर देखते हैं कि, रोगीका कफ ऊपर तैर रहा है या गिलासके पैंदेमें जा बैठा है। ___ अगर कफ ऊपर तैरता हुआ पाया जाता हैं, नीचे नहीं बैठता, तब रोगको सिल गैर-हक़ीक़ी समझते हैं और रोगीका इलाज हाथमें ले लेते हैं, क्योंकि उन्हें आराम हो जानेकी आशा हो जाती है। ___ अगर कफ पैदेमें नीचे चला जाता है, तो सिल-हक़ीक़ी समझते हैं । ऐसे रोगीका इलाज हाथमें नहीं लेते, क्योंकि सिल-हक़ीक़ीका आराम होना मुश्किल है।
और परीक्षा-विधि । अगर इस परीक्षामें कुछ शक रहता है, तो वे रोगीके कफ या थूकको जलते हुए कोयलेपर डाल देते हैं। अगर उससे घोर दुर्गन्ध आती है, तो सिल-हक़ीक़ी समझते हैं और उस रोगीका इलाज नहीं करते।
प्र०-रोगी और परिचारकके सम्बन्धमें भी कुछ कहिये ।
उ०-रोगी और परिचारक यानी मरीज़ और तीमारदारी करनेवाला भी चिकित्साके दो मुख्य अंग हैं । केवल उत्तम औषधि और
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