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क्षयरोगपर प्रश्नोत्तर।
.६२३ प्रलेपफ-ज्वरमें हल्का-हल्का ज्वर रहता है, पसीनोंसे शरीर तर रहता. है और ठण्डकी फुरफुरी लगती है। अँगरेजीमें इसे हैटिक फीवर, कहते हैं। ... हिकमतके मतसे कमजोरी, क्षीणता, मन्दाग्नि और अति मैथुन
आदि इसके कारण हैं । कहते हैं, उसमें सर्दी लगकर बुखार चढ़ता है, हाथ-पाँवके तलवे गर्म रहते हैं, मन्दा-मन्दा ज्वर रहता है, भूख नहीं लगती, पसीना चीकटा-सा आता है, जीभपर मैल होता है, दस्त लगते हैं, किसी अंगमें पीप पैदा हो जाता है तथा थकान और. वेदना वगैरः लक्षण होते हैं। सारांश यह कि, हकीमोंका दिक़, डाक्टरोंका हैक्टिक फीवर और आयुर्वेदका प्रलेपक-ज्वर राजयक्ष्माकी एक खास
अवस्था है; यानी वह किसी अवस्था विशेषमें होता है। __हकीम लोग क्षयको “सिल" भी कहते हैं । हमारी रायमें “सिल" उरःक्षतको कहना चाहिये । सिल शब्दका अर्थ कमजोरी और दुबलापन होता है और दिकका अर्थ भी कमजोर है । ___ हकीम कहते हैं कि, नीचे लिखे कारणोंसे यह रोग होता है:
(१) नजलेके पानीके फेफड़ोंपर गिरने और खराश पैदा कर देनेसे दिक्क होता है।
(२) न्यूमोनियाका ठीक-ठीक इलाज न होने, उसके दोषोंके पक जाने और फेफड़ों में जलन कर देनेसे दिक होता है।
(३) पुरानी खाँसीका अच्छा इलाज न होने, उसके बहुत दिनों तक बने रहने, उसकी वजहसे फेफड़ोंके कमजोर हो जाने, और उनमें खराश होकर घाव हो जानेसे दिक़ होता है।
वे इसको दो हिस्सोंमें तक़सीम करते हैं:(१) सिल-हक़ीक़ी। (२ ) सिल-गैरहक़ीक़ी ।
उनकी तारीफ़ । (१) सिल हक़ीक़ी होनेसे रोगीके थूकमें खून और पीप आते हैं।
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