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क्षय रोगपर प्रश्नोत्तर।
६२१ श्वास-मार्गों द्वारा दूसरोंके अन्दर घुस जाते और उनका प्राण-नाश करते हैं।
प्र०-यक्ष्मा कहाँ-कहाँ होता है ?
उ०-यक्ष्मा शरीरके प्रत्येक अंगमें हो सकता है और होता भी है, पर विशेष रूपसे वह नीचे लिखे अंगोंमें होता है:
(१) फेंफड़े, (२) कंठ, (३) हड्डी ( ४ ) हड्डी और उनके जोड़, (५) आँतें और ( ६ ) कंठमाला।
मतलब यह कि, उपरोक्त फेफड़े आदिका क्षय बहुत करके होता है। सारे शरीरमें तब होता है, जब कीटाणु टॉकसिन नामक विष पैदा करते हैं और वह विष सारे शरीरमें फैलता है; पर ऐसा कम होता है। आजकल तो बहुत करके फेफड़ोंका ही क्षय होता है और उसीसे रोगी चोला छोड़ चल देता है। शुरूमें यह फेंफड़ेके अगले भागमें होता है। अगर बायें फेंफड़ेपर होता है, तो दाहिने फेंफड़ेसे काम चला जाता है पर ऐसा भी बहुत कम होता है।
प्र० -फेंफड़ोंके क्षयके लक्षण तो बताइये।
उ०-(१)छाती तंग होती, कन्धे झुक जाते, (२)धीरे-धीरे शरीरमें कमजोरी होती और कभी-कभी एक-दमसे कमजोरी आ जाती है। (३) चमड़ा जरा-जरा पीला-सा हो जाता है । (४) कभी-कभी गालोंपर ललाई दीखती है । (५) जुकाम बहुधा बना रहता है । (६) रोगीका मिजाज बदल जाता है । दयालु स्वभाववाला निर्दयी हो जाता
और निर्दयी दयालु हो जाता है। (७) पहले जो चीजें या जो बातें अच्छी मालूम होती थीं; क्षय होनेपर बुरी लगती हैं। रुचि बदल जाती है । (८) काम करनेसे थकाई जल्दी आने लगती है । (६) शामके वक्त मन्दा-मन्दा ज्वर या हरारत रहती है। टैम्परेचर ८॥ से ६६॥ डिग्री तक हो जाता है। (१०) भूख नहीं लगती । (११) दिलकी धड़कन बढ़ जाती है। (१२) छातीमें दर्द होता है। (१३) खाँसी
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