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क्षय-रोगपर प्रश्नोत्तर। लेनेके समय, नाक द्वारा, भीतर घुस जाते हैं अथवा भोजनपर बैठकर भोजन-द्वारा अच्छे-भले मनुष्यके आमाशयमें पहुँच जाते हैं। अगर वंशमें किसीको क्षय-रोग होता है और उसके थूक-खखार आदिसे बचाव नहीं रखा जाता, तो उसके थूक वगैरःके कीड़े दूसरों के अन्दर प्रवेश करके क्षय पैदा करते हैं। ___ हवा और धूलमें मिलकर जिस तरह और रोगोंके कीड़े एक जगहसे दूसरी जगह जा पहुँचते हैं, उसी तरह इस क्षय-रोगके कीड़े भी क्षय-रोगीके कफसे निकलकर, हवामें मिलकर, तन्दुरुस्त
आदमियोंके नाक और मुंहमें घुसकर, फेंफड़ों तक जा पहुँचते हैं और फिर वहाँ अपना डेरा जमा लेते हैं। __ ये कीटाणु प्रायः नित्य बढ़ते रहते हैं और थूक द्वारा बाहर निकल-निकलकर भले-चंगोंको मारते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि, उनकी छुटाईका कोई हिसाब भी नहीं लगाया जा सकता। ये नङ्गी
आँखों ( Naksal eyes ) से नहीं दीखते । हाँ, खुर्दबीन या सूक्ष्मदर्शक यंत्रसे, जिसे अंगरेजीमें माईक्रोसकोप कहते हैं, वे अच्छी तरह नजर आते हैं। __ जब क्षय-रोगी आराम हो जाता है, तब डाक्टर लोग अक्सर क्षय-रोगीके खून और थूककी परीक्षा .खुर्दबीनसे करते हैं। अगर उनमें क्षयके कीटाणु नहीं पाये जाते, तब उसे रोगमुक्त समझते हैं । हाँ, अगर ये पचीस हजार कीटाणु, एक सीधमें, पंक्ति लगाकर, एक दूसरेसे सटकर, रखे जावें तो ये एक इञ्च लम्बी जगहमें आजावेंगे। इसी तरह एक पदम जीवाणुओंका वजन सिर्फ एक माशे-भर होता है । ये बहुत जल्दी बढ़ते हैं। २४ घण्टेमें एक कीटाणुसे तीन पदमके क़रीब हो जाते हैं। इस तरह ये बढ़ते-बढ़ते रोगीके फेफड़ोंमें घाव पैदा करके उन्हें खराब कर देते हैं। घाव हो जानेसे ही रोगीके थूकमें खून और पीप आने लगते हैं। रोगी कमजोर होता जाता है
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