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'चिकित्सा-चन्द्रोदय । तीसरा दर्जा-इस दर्जेमें ज्वर और खाँसी सभीका जोर बढ़ जाता है । कफ पहलेसे गाढ़ा होकर अधिकतासे आने लगता है। जहाँ गिराया जाता है, वहाँ गोंदकी तरह चिपक जाता है। उसमें
खूनके लोथड़े होते हैं। कफमें जो पीप आती है, उसमें दुर्गन्ध होती है। यह रोगीको स्वयं अपनी नाकसे मालूम होती और बुरी लगती है। रोगीको न सोते चैन न बैठे चैन । उठता है, बैठता है, फिर पड़ जाता है, क्योंकि बैठनेकी ताक़त नहीं होती। उसकी आवाज़ बदल जाती है। गरमीके मौसममें वह चाहता है कि, मैं अपने हाथपाँव बर्फमें डाले रहूँ। कभी हाथ-पैरोंको ठंडे जलसे भिगोता है, कभी निकालता है, पर चैन नहीं पड़ता। सवेरे ही छाती और सिरपर गाढ़ा और चेपदार पसीना बहुत आता है। उसे नींद नहीं आती। पाँवोंपर सूजन चढ़ आती है। बाल गिरने लगते हैं। ज्वर साढ़े अट्ठानवें डिग्रीसे १०३ डिग्री तक होता रहता है । ज्वरके दो दौरे जरूर होते हैं। खाना खाने बाद, अगर आता है, तो १२ बजे ज्वर बढ़ता है और यह दो बजे तक बढ़ी हुई हालतमें रहता है; फिर हल्का हो जाता है। शामको ६ बजेसे रातके 2 बजे तक फिर ज्वरका दौरा हो जाता है। वह रातको तीन बजे तक पसीने आकर कुछ हल्का हो जाता है, पर एकदम उतर नहीं जाता। इस तरह रोगीकी हालत दिनपर-दिन बिगड़ती जाती है और ये सब शिकायतें उसकी जीवनीशक्तिको नाश कर देती हैं। कोई इलाज कारगर नहीं होता । अन्तमें रोगी सब कुटुम्बियोंको रोता-विलपता छोड़कर, यमराजका मेहमान बननेको, इस ना-पायेदार दुनियासे कूच कर जाता है।
प्र०--जब रोगीका अन्त समय निकट आ जाता है, तब क्या हालतें होती हैं ? - उ०-जब रोगीका मृत्युकाल पास आ जाता है, तब उसकी भूख खुल जाती है, पहले वह नहीं खाता था तो भी अब कुछ खाने लगता है । उसका आमाशय अपना काम नहीं करता, इसलिये उसका खाया
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