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क्षय-रोगपर प्रश्नोत्तर।
६१५ . पहला दर्जा-सबसे पहले जुकाम होता है, वह बहुत दिनों तक बना रहता है । थोड़ी-थोड़ी सूखी खाँसी आती रहती है। फिर जुकाम बिगड़ जाता और बढ़कर मन्दा-मन्दा ज्वर पैदा कर देता है। यह ज्वर ऐसा होता है कि, रोगीको मालूम भी नहीं होता। खाँसनेपर थोड़ा-थोड़ा पतला-सा कफ आता है। हाथोंकी हथेलियाँ और पाँवोंके तलवे जलते हैं। कन्धे और पसवाड़े दर्द करते हैं । भूखप्यास वगैरःमें जियादा फेर-फार नहीं होता। यह पहला दर्जा है । अगर रोगी यहीं चेत जावे; किसी अनुभवी वैद्यके हाथमें चला जावे, तो जगदीशकी दयासे आराम हो सकता है।
दूसरा दर्जा--ग़फ़लत करनेसे जाड़ा लगकर ज्वर चढ़ने लगता है। जिस समय पीप बनने लगती है, ज्वर ठण्ड लगकर रातमें दो बार चढ़ता है। कमजोरी मालूम होती है, खाँसी चलती रहती है, फेंफड़ोंसे खून आने लगता है, हाथ-पाँवों में जलन होती है, मन्दामन्दा ज्वर हर समय बना ही रहता है, ज़रा भी मिहनत करनेसे--मिहनत चाहे दिमागी हो चाहे शारीरिक--फौरन थकान आ जाती है, दिलकी धड़कन बढ़ जाती है, जीभ सफेद हो जाती है, मुँह लाल और होंठ नीले हो जाते हैं । आँखें सफेद और भीतरको नेत्रकोषोंमें घुसी जान पड़ती हैं। छातीमें सुई चुभानेकी-सी वेदना होती है, खाँसी बहुत बढ़ जाती है। खाँसनेसे काँसीके फूटे बासनकी-सी आवाज़ निकलती है। ज्वर थर्मामीटरसे देखनेपर १०३ डिग्री तक देखा जाता है। नाड़ीकी फड़कन प्रति मिनट पीछे ११० या इससे भी अधिक हो जाती है। रोगीकी बेचैनी बढ़ जाती है। नींद नहीं आती। शरीर सूखता और कमजोर होता जाता है। कमज़ोरी बहुत ही ज़ियादा हो जाती है। इस अवस्था या दर्जेमें अगर पूर्ण अनुभवी वैद्यका इलाज जारी हो जावे, तो कुछ लाभ हो सकता है। रोगी कुछ दिन और संसारमें रह सकता है। रोगसे कतई छुटकारा होना असम्भव तो नहीं महाकठिन अवश्य है।
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