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क्षय-रोगपर प्रश्नोत्तर।
६११ है, नाड़ीकी चाल भी तेज होती जाती है। नाड़ीपर उँगली रखकर और दूसरे हाथमें घड़ी लेकर, अगर आप नाड़ीके खटके गिनें, तो आपको ६० से लेकर १०० तक खटके एक मिनटमें गिननेमें आवेंगे। लेकिन कभी-कभी एक मिनटमें ११० बार तक नाड़ीके खटके गिन्तीमें आते देखे जाते हैं।
प्र०--क्षय-ज्वरके पसीनों और दूसरे ज्वरोंके पसीनोंमें क्या अन्तर है ?
उ०-क्षय-ज्वरमें रातके समय दो-तीन दफा बहुत ही जियादा पसीने आते हैं। यहाँ तक कि ओढ़ने-बिछानेके सारे कपड़े पसीनोंसे तर हो जाते हैं। पसीने इस रोगमें छातीपर अक्सर आते हैं। जब कि और ज्वरों में सारे शरीरमें आते हैं। इस रोगमें पसीने आनेसे रोगी एकदम जल्दी-जल्दी कमजोर होता जाता है । पसीनोंसे उसे सुख नहीं मिलता, उसका शरीर हल्का नहीं होता; जैसा कि दूसरे ज्वरों में पसीने आनेसे रोगीका शरीर हल्का हो जाता और उसे आराम मिलता है। रातमें पसीने आते हैं, उसे डाक्टरीमें रातके पसीने ( Night Perspiration ) कहते हैं । ये रातके पसीने इस क्षय-रोगमें रोगके असाध्य ( Incurable ) होनेकी निशानी हैं। ऐसा रोगी नहीं बचता।
प्र०--इस रोगमें पेशाब कैसा होता है ?
उ०-क्षय-रोगीके पेशाबमें चर्बी और चिकनाई होती है । पेशाबका रंग किसी क़दर कलाई लिये होता है। जब रोगीका खून क्षयकी वजहसे जलता है, तब पेशाबमें श्यामता या कलाई होती है। जब पित्तकी ज़ियादती होती है तब पेशाबका रंग पीला होता है । अगर क्षय-रोगीका पेशाब सफेद रंगका हो तो समझो कि, रोगीकी ओज धातु क्षीण हो रही है। अगर ऐसा हो, तो रोगीको असाध्य समझो और उसका इलाज हाथमें मत लो। मूर्ख वैद्य रोगीका पेशाब सफ़ेद
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