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चिकित्सा-चन्द्रोदय । नाड़ी तेज, गरम, बारीक और अन्दरको घुसी हुई चलती है । पेशाबमें चर्बी और चिकनाई आती है । रोगी दिन-ब-दिन सूखता जाता है। . ... प्र०-क्षयके ज्वरके सम्बन्धमें कुछ और कहिये ।।
उ०--क्षयरोगमें ज्वर तो मुख्य लक्षण है और खाँसी उसकी सहचरी है। इसमें थर्मामीटर लगाकर देखनेसे ज्वर प्रायः ६८॥ डिग्रीसे १०३ डिग्री तक देखा जाता है । किसीको इस रोगमें दो बार ज्वरके दौरे होते हैं। पहला दौरा दिनके १२ बजेसे दोपहर बाद २ बजे तक होता है। दूसरा दौरा शामके ६ बजेसे रातके ६ बजे तक होता है । पहला १२ बजेवाला दौरा कुछ खानेके बाद होता है। तड़काऊ, रातके तीन बजे, सभी क्षयवालोंको पसीने आते हैं और ज्वर कम हो जाता है। इस पर ज्वरकी कमीसे रोगीको कोई लाभ नहीं होता, उसकी ताक़त रोज-ब-रोज़ घटती जाती है । अन्तमें वह यमालयका राही होता है। हाँ, एक बात और है। प्रायः ज्वरका ताप १०३ डिग्री तक रहता है; पर किसी-किसीको इससे भी जियादा होता है। सवेरे ३ बजे सभी क्षयवालोंका बुखार नहीं उतर जाता। कितनोंका बेशक कम हो जाता है; पर कितनेही तो चौबीसों घण्टों ज्वरके तापसे यकसाँ तपते रहते हैं, यानी हर समय ज्वर एकसा चढ़ा रहता है । जिनका ज्वर तड़काऊ तीन बजे पसीने आकर हल्का हो जाता है, उनका ज्वर भी दिनके १२ बजे, दोपहरको, अवश्य फिर बढ़ जाता है।
प्र०- रोगीकी नाड़ीके सम्बन्धमें भी कुछ कहिये । ____उ०-रोगीकी नाड़ी या नब्ज़ तेज़ चलती, गरम और बारीक रहती तथा भीतरको घुसी हुई-सी चलती है। नाड़ीकी चाल बेशक तेज़ रहती है, लेकिन रोगकी कमी-बेशी होनेपर नाड़ीकी चालमें फर्क हो जाता है । रोग होनेपर, आरम्भमें, नाड़ीकी चाल तेज़ होती है, पर ज्यों-ज्यों रोग अपना भयङ्कर रूप धारण करता या बढ़ता जाता
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