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क्षय-रोगपर प्रश्नोत्तर।
६०५ नामक कीड़ा ( Germ) या कीटाणु फेफड़ोंमें पैदा होकर, उन्हें
आहिस्ते-आहिस्ते खा-खाकर नष्ट कर देता है। साथ ही टॉकसाइन नामक एक भयङ्कर विष पैदा कर देता है, जिसका परिणाम बहुत ही भयानक और मारक है।
प्र०-डाक्टरीमें क्षयके क्या कारण लिखे हैं ?
उ०--आयुर्वेदके मतसे हम इसके पैदा होनेके कारण लिख आये हैं । अब हम डाक्टरीसे इसके कारण दिखाते हैं
डाक्टरीमें इसकी पैदायशका कारण, असलमें, कीटाणु या जर्म ( Germ ) है । बहुतसे क्षय-रोगी जहाँ-तहाँ थूक देते हैं। उनके थूकखखारमेंसे कीटाणु श्वास-द्वारा या भोजनके पदार्थोंपर बैठकर दूसरे स्वस्थ लोगोंके फेफड़ों या आमाशयोंमें घुस जाते हैं और इस तरह क्षय रोग पैदा करते हैं।
जो लोग मिलों या अञ्जनों वरःमें काम करते हैं, अथवा छापेखानों या टेलरशॉपोंमें काम करते हैं अथवा बहुत शराब वगैरः पीते हैं, उनके शरीर इन कीटाणुओंके डेरा जमानेके लायक हो जाते हैं ।
जिनके शरीर निमोनिया, प्लेग, इनफ्लूएञ्जा, चेचक या माता वगैरः रोगोंसे कमजोर हो गये हैं, उनपर क्षयके कीड़े जल्दी ही हमला कर देते हैं।
जिनके रहनेके स्थान घनी ( Densely-populated ) बस्तीमें होते हैं, जिनके घरों में अँधेरा जियादा होता है, जिनके रहनेके कमरे
खूब हवादार ( well ventilated ) नहीं होते, जिनके श्वासमें धूल, धूआँ या गर्द-गुबार जियादा जाता है, उनपर क्षयके कीटाणु अवश्य हमला करते हैं।
जिनको रात-दिन नोन तेल लकड़ीकी चिन्ता रहती है, जिन्हें काफी भोजन और पर्याप्त धी-दृध नहीं मिलता, जो भंग, चरस,
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