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चिकित्सा-चन्द्रोदय । मल हो जाता है और उसी मलके सहारे वह जीता है। इससे क्षयरोगी अगर बलवान न हो, तो उसे पंचकर्मोंसे शुद्ध न करना चाहिये । अगर दस्त एक दम न होता हो, मल सूख गया हो, तो हल्की-सी दस्तावर दवा देकर एकाध दस्त करा देना चाहिये।
.(३) कोई भी रोग क्यों न हो, सबमें पथ्य-पालन और अपथ्यके त्यागकी बड़ी जरूरत है। बिना पथ्य-पालन किये रोगी अमृतसे भी आराम हो नहीं सकता है; जब कि पथ्य-पालनसे बिना दवाके ही आराम हो जाता है। बहुत-से रोग ऐसे हैं, जिनमें रोगीका मन उन्हीं चीजोंपर चलता है, जिनसे रोगीका रोग बढ़ता है अथवा जो चीजें रोगीके हक में नुकसानमन्द हों । खासकर क्षयरोगीका दिल ऐसे ही पदार्थोपर चलता है, जिनसे उसकी रस, रक्त, मांस, मेद आदि धातुएँ क्षीण होनेकी सम्भावना हो । इसलिये क्षय-रोगीका मन जिन-जिन पदार्थोंपर चले, उन-उन पदार्थोंको उसे हरगिज़ न देना चाहिये। उसे ऐसे ही पदार्थ देने चाहियें, जिनसे उसकी धातुएँ बढ़े और गरमी कम हो। क्षयरोगीको मीठे घन पदार्थ सदा हितकारी हैं, क्योंकि इनसे धातुओंकी वृद्धि होती है।
(४) अगर जीर्णज्वर और यक्ष्मावालेको उत्तम-से-उत्तम दवा देनेपर भी लाभ न हो, तो उसके यकृतपर ध्यान देना चाहिये। क्योंकि यकृतके दोष आराम हुए बिना हजारों दवाओंसे भी जीर्णज्वर और क्षय-रोग आराम हो नहीं सकते। यकृतमें खराबी होने, सृजन आने या मवाद पड़नेसे मन्दा-मन्दा ज्वर चढ़ा रहता है, भूख नहीं लगती, कमजोरी आ जाती है और शरीर पीला हो जाता है। हमारे शास्त्रोंमें यकृतके निदान-लक्षण बहुत ही कम लिखे हैं। बंगसेनने बेशक अच्छा प्रकाश डाला है । वह लिखते हैं
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