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राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा । ५६ मुँ हपर सूजन आ जाती है, रातको नींद नहीं आती, मन्दा-मन्दा ज्वर बना रहता है; अथवा दाह या जलन होती है, क्रोध आता है, स्त्रियाँ बुरी लगती हैं, शरीर काँपता है, जी घबराता है, जोड़ोंपर सूजन आ जाती है और शरीर रूखा हो जाता है।
शुक्र बढ़ानेके उपाय । ... हारीत कहते हैं, अगर वीर्य कम हो गया हो, तो उसके बढ़ानेके लिये नीचे लिखे पदार्थ हित हैं । जैसे,—अच्छी तरह पकाये हुए रस, नौनी घी, दूध, मीठे पदार्थ, ककहीकी जड़की छाल, विदारीकन्द
और सेमलकी मूसरीको दूधके साथ मिश्री मिलाकर पीना । चौथे भागके पृष्ठ १८४ में लिखी हुई “धातुवर्द्धक-सुधा" गायको खिलाकर, वही दूध पीनेसे वीर्य खूब बढ़ता है।
(२) अगर क्षय-रोगी ताक़तवर हो और उसके वातादिक दोष बढ़े हुए हों तो स्नेह, स्वेद, वमन, विरेचन और वस्ति-क्रियासे उसका शरीर शुद्ध करना चाहिये । पर, अगर रोगीके रस-रक्त आदि धातु क्षीण हो गये हों, तो भूलकर भी वमन विरेचन आदि पंचकर्मो से काम न लेना चाहिये। जो वैद्य बिना सोचे-समझे ऊँटपनेसे क्षयरोगीकी शुद्धिके लिये कय और दस्त आदि कराते हैं, उनके रोगी बिना मौत मरते हैं। मनुष्योंका बल वीर्य के अधीन है और जीवन मलके अधीन है, इसलिये धातुक्षीण-क्षय-रोगीके वीर्य और मलकी रक्षा अवश्य करनी चाहिये। जिसमें क्षय-रोगीका जीवन तो मल हीके अधीन होता है । वाग्भट्टमें लिखा है-- - सर्वधातुक्षयार्त्तस्य बलं तस्य हि बिड्बलम् । . जिसकी समस्त धातुएँ क्षीण हो गई हैं, उस क्षय-रोगीको एक
मात्र विष्ठाके बलका ही सहारा है।। . . “वाग्भट्ट" में ही और भी कहा है, कि क्षयरोगीका खाया-पिया, शरीर और धातुओंकी अग्निसे न पककर, कोठोंमें पकता है और
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