________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा। ५८७ जो क्षय-रोगी ज्वरकी पीड़ासे रहित, बलवान, चिकित्सा सम्बन्धी क्रियाओंको सह सकनेवाला, यत्न करनेवाला, धीरज धरनेवाला
और प्रतीप्त अनिवाला हो और जो दुबला न हो, उसकी चिकित्सा करनी चाहिये।
निदान-विशेषसे शोष विशेष ।
शोष-रोगके और छ भेद । निदान विशेषसे शोष या क्षय-रोग छै तरहका होता है। (१) व्यवाय शोष--यह अति मैथुनसे होता है। (२) शोक शोष-यह बहुत शोक या रंज करनेसे पैदा होता है। (३) वार्द्ध क्य शोष-यह असमय के बुढ़ापेसे होता है । (४) व्यायाम शोष-यह बहुत ही कसरत-कुश्तीसे होता है। (५) अध्ध शोष--यह बहुत राह चलनेसे होता है। (६) व्रण शोष-यह व्रण या घाव होनेसे होता है । उरःक्षत शोष--यह छातीमें घाव होनेसे होता है।
नोट-यद्यपि उरःक्षत रोगको यमासे अलग, पर उसके बाद ही कई श्राचार्यों ने लिखा है, पर हम उसे यहाँ इसलिये लिख रहे हैं कि, उसकी और यक्ष्माकी चिकित्सामें कोई प्रभेद नहीं । जो यक्ष्माका इलाज है, वही उरःक्षतका इलाज है।
व्यवाय शोषके लक्षण। इस शोषमें, "सुश्रुत में लिखे हुए, वीर्य-क्षय के सब चिह्न होते हैं; यानी लिङ्ग और अण्डकोषों-फोतोंमें पीड़ा होती है, मैथन करनेकी सामर्थ्य नहीं रहती अथवा मैथुन करते समय अनेक बार वीर्य स्खलित होता है; पर बहुत थोड़ा वीर्य निकलता है और रोगीका शरीर पाण्डुवर्णका हो जाता है। इस प्रकारके क्षय-रोगमें पहले वीर्य क्षय होता है। वीर्यके क्षय होनेसे वायु कुपित होकर मज्जा आदि धातुओंको क्षय करता है।
For Private and Personal Use Only