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-- चिकित्सा-चन्द्रोदय । गला बैठना, अरुचि और ज्वर ये 2 लक्षण हों अथवा श्वास, खाँसी
और खून थूकना-तीन लक्षण हों तो रोगीको असाध्य समझो । ___ अगर रोगीमें जुकाम प्रभृति लक्षण कम भी हों, पर रोगी रोग
और दवाके बलको न सह सकता हो, तो वैद्य उसको असाध्य समझकर, उसका इलाज न करे, यह वाग्भट्टका मत है।
नोट-अगर रोगीमें जुक्काम आदि सब लक्षण हों, पर वह रोग और दवाके बलको सह सकता हो, तो पाराम हो जायगा ।
भावमिश्रजी कहते हैं, यशकामी वैद्य ग्यारह या छै अथवा ज्वर, खाँसी और खून थूकना इन तीन लक्षणोंवालोंका इलाज नहीं करते।
जो क्षय-रोगी खूब जियादा खाने-पीनेपर भी सूखता जाता है, वह असाध्य है-आराम न होगा।
जिस रोगीको अतिसार हो-पतले या आम मरोड़ी वगैरःके दस्त लगते हों, उसका इलाज वैद्यको न करना चाहिये, क्योंकि वह असाध्य है । कहा है
मलायत्तं बलं पुंसां शुक्रायत्तं चजीवितम् ।
तस्माद्यत्नेन संरक्षेद्यचिमणो मल रेतसी ॥ मनुष्योंका बल मलके अधीन है और जीवन वीर्यके अधीन है, अतः क्षय रोगीके मल और वीर्यकी रक्षा यत्नसे-खूब होशियारीसे करनी चाहिये।
क्षय-रोगका अरिष्ट । जिस क्षयरोगीकी आँखें सफ़ेद हो गई हों, अन्नमें अरुचि हो-- खानेको मन न चाहता हो और उर्द्ध श्वास चलता हो, उसे अरिष्ट है, वह मर जायगा।
जिस रोगीका बहुत-सा वीर्य कष्टके साथ गिरता हो, वह क्षयरोगी मर जायगा।
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